गुरूब्रम्हा, गुरूविष्णु :, गुरूर्देवो महेश्वरः ।
गुरूसाक्षात् परब्रम्ह, तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
प्रथम गुरूजी को वंदना, दूजे आदि गणेश।
तीजे भजूँ माँ शारदा, कंठ करो प्रवेश।।
प्रथम गुरूजी को वंदना, दूजे आदि गणेश।
तीजे भजूँ माँ शारदा, कंठ करो प्रवेश।।
गुरू मूरति मुख चंद्रमा, सेवक नैन चकोर।
आड़आठ प्रहर निरखत रहूँ, गुरु मुरति की ओर॥
नमो नमो गुरुदेव जी, पडूँ चरण बहुबार।
भवसागर से तार के, कर दो वेड़ा पार॥
ध्यानमूलं गुरुमूर्ति पूजामूलं गुरुपदं,
मंत्रमूलं गुर्रुवाक्यं मोक्ष मूलं गुरूकृपा।
मंत्र सत्यं पूजा सत्यं, सत्यं देव निरंजनं,
गुरू वाक्यं सदा हि सत्यं, सत्यं सोई परम् पदम् ॥
अखंड मंडलाकारं ब्याप्तं येन चराचरम।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
भारद्वाज कुलाब्धि कोस्तुभमणिं श्री सिद्धदाता आश्रमे ।
सक्तं भागवतं सुपूजनविधो सिद्धिप्रदं शाश्वतम॥
गोविन्दाचार्य गुरोरवाप्त सकलं मंत्रार्थ रत्नं सुभम।
श्रीमत सोहनजं सुदर्शनगुरुं वन्दे कृपासागरम॥
भारद्वाज कुलाब्धि दिव्यरत्नं श्री मत्सूदर्शनात्मजम।
स्वाचार्यं कृपया च सिद्धिविमला प्राप्ताशुभाशवती ॥
लक्ष्मीनाथ नृसिंह पाद्युगले भक्त्यारतं प्रत्यहम ।
आचार्य पुरुषोत्तम गुरुवरं वन्दे दयासागरम ॥
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