Monday, September 7, 2015

Shree Hanuman Chalisha - श्री हनुमान चालीसा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बरनौ रघुबर बिमल जसु, जो दायकू फल चारि
बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||


चोपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा |
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा ||

महाबीर बिक्रम बजरंगी|
कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुंचित केसा ||

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे|
काँधे मूंज जनेऊ साजे||
संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग बंदन||

विद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||

सुकसम रूप धरी सियहि दिखावा |
बिकट रूप धरी लंक जरावा ||
भीम रूप धरी असुर संहारे |
रामचंद्र के काज संवारे ||

लाय संजीवनी लखन जियाये |
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||

सहस बदन तुम्हरो जस गावे |
अस कही श्रीपति कंठ लगावे ||
सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा|
नारद सारद सहित अहीसा ||

जम कुबेर दिगपाल जहा ते|
कबि कोबिद कही सके कहा ते||
तुम उपकार सुग्रीवहीं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||

तुम्हरो मंत्र विभिषण माना |
लंकेश्वर भए सब जग जाना ||
जुग सहस्र योजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जाणू ||

प्रभु मुद्रिका मेली मुख माहीं|
जलधि लांघी गए अचरज नाहीं||
दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||

राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आग्यां बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रक्षक काहू को डरना ||

आपन तेज सम्हारो आपे |
तीनों लोक हांक ते काँपे ||
भुत पिशाच निकट नहिं आवे |
महावीर जब नाम सुनावे ||

नासै रोग हरे सब पीरा |
जपत निरंतर हनुमत बीरा ||
संकट से हनुमान छुडावे |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै||

सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावे |
सोई अमित जीवन फल पावे ||

चारों जुग प्रताप तुम्हारा |
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
साधु संत के तुम रखवारे |
असुर निकंदन राम दुलारे ||

अष्ट सिद्धि नौनिधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||

तुम्हरे भजन राम को पावे |
जनम जनम के दुःख बिस्रावे ||
अंत काल रघुबर पुर जाई |
जहा जनम हरी भक्त कहाई ||

और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेई सर्व सुख करई||
संकट कटे मिटे सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||

जय जय जय हनुमान गोसाई |
कृपा करहु गुरु देव के नाइ ||
जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटही बंदी महा सुख होई ||

जो यहे पढे हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसीदास सदा हरी चेरा |
कीजै नाथ हृदये मह डेरा ||

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूर्ति रूप |
राम लखन सीता सहित , ह्रुदय बसहु सुर भूप।।

Krishan Govind Govind Gopal Nandlal - कृष्ण गोविन्द गोविन्द गोपाल नन्दलाल

कृष्ण गोविन्द गोविन्द गोपाल नन्दलाल,
कृष्ण गोविन्द गोविन्द गोपाल नन्दलाल । -4
हे गोपाल नन्दलाल हे गोपाल नन्दलाल, 
गोपाल नन्दलाल हे गोपाल नन्दलाल। -4
कृष्ण गोविन्द गोविन्द गोपाल नन्दलाल,
कृष्ण गोविन्द गोविन्द गोपाल नन्दलाल। -2

हम प्रेम नगर की बंजारन.....
हम प्रेम नगर की बंजारन, 
जप तप और साधन क्या जाने।
जप तप और साधन क्या जाने।।

हम स्याम के नाम की दीवानी,
ब्रत नेम का बंधन क्या जाने।

हम ब्रज की भोली ग्वालिनियाँ....
हम ब्रज की भोली ग्वालिनियाँ,
ब्रम्ह ज्ञान की उलझन क्या जाने।
ब्रम्ह ज्ञान की उलझन क्या जाने।।

ये प्रेम की बातें है उद्धव....
ये प्रेम की बातें है उद्धव,
कोई क्या समझे कोई क्या जाने।
मेरे और मोहन की बातें, 
या मै जानू या ओ जाने।

हे गोविन्द......

हे गोपाल.....हे गोपाल

मैंने स्याम सुंदर संग प्रीत करी....
मैंने स्याम सुंदर संग प्रीत करी,
जग में बदनाम मै होय गयी।
कोई एक कहे कोई लाख कहे,
जो होनी थी सो तो होय गयी।

कोई साच कहे कोई झूठ कहे,
मै तो स्याम पिया की होय गयी।
मीरा के प्रभु कबरे मिलोगे,
मै तो दासी तुम्हारी होय गयी।।

कृष्ण गोविन्द गोविन्द गोपाल नंदलाल,
हे गोपाल नन्दलाल हे गोपाल नन्दलाल,
हे गोपाल नन्दलाल हे गोपाल नन्दलाल।

गोपाल राधे कृष्ण गोविन्द गोविन्द-2
कृष्ण गोविन्द गोविन्द कृष्ण गोविन्द गोविन्द-2
गोपाल राधे कृष्ण गोविन्द गोविन्द-4

हे गोपाल हे गोपाल.......

Hey Guru ye Daas - हे गुरु ये दास तो नादान है

हे गुरु ये दास तो नादान है,
तू ही मेरा देवता भगवान है।।

मै बताऊ क्या मुझे है चाहिए,
जानकर भी तू बना अनजान है।
हे गुरु...

है समर्पण पूर्ण चरणों में तेरे,
तेरी चौखट पर बिछा अभिमान है।
हे गुरु...

मै हूँ निर्भर तुझपे निर्भय कर मुझे,
तेरे हाथो में अभय वरदान है।
हे गुरु...

मैंने तुझको अपना माना तू मुझे,
मान ले अपना तेरा अहसान है।
हे गुरु...

दास तेरा हूँ मुझे कोई नाम दे,
नाम है मेरा मगर गम नाम है।
हे गुरु...

भक्त की पहचान ही भगवान है,
भक्त के बिन भी दुखीः भगवान है।

हे गुरु ये दास तो नादान है,
तू ही मेरा देवता भगवान है।

Jindagi ek kiraye ka ghar hai - जिंदगी एक किराये का घर है

जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा-2

[मौत जब तुमको आवाज देगी-२
घर से बाहर निकलना पड़ेगा।]-२

जिंदगी एक किराये का घर है...

[रात के बाद होगा सवेरा,
देखना हो अगर दिन सुनहरा]-२

[पाँव फूलो पे रखने से पहले-२
तुझको कांटो पे चलना पड़ेगा]-२

जिंदगी एक किराये का घर है...

[ये तसउवर ये जोस और जवानी,
चंद लम्हों की है कहानी]-२
[ये जवानी अगर ढल गयी तो-२
उम्र भर हाथ मलना पड़ेगा]-२

जिंदगी एक किराये का घर है..

Jagat ke rang kya dekhun - जगत के रंग क्या देखूँ

जगत के रंग क्या देखूँ, तेरा दीदार काफी है।
करूं मैं प्यार किस किससे, तेरा एक प्यार काफी है।

नही चाहिए ये दुनिया के, निराले रंग ढंग मुझको-2
निराले रंग ढंग मुझको-2
चली आऊ मैं तेरे दर, तेरा दरबार काफी है-2
जगत के रंग क्या देखूँ, तेरा दीदार काफी है।
करूं मैं प्यार किस किससे, तेरा एक प्यार काफी है।

जगत के साज बाजो से, हुए है कान अब बहरे-2
हुए है कान अब बहरे-2
कहाँ जा के सुनु अनहत, तेरी झंकार काफी है-2
जगत के रंग क्या देखूँ, तेरा दीदार काफी है।
करूं मैं प्यार किस किससे, तेरा एक प्यार काफी है।

जगत के रिश्तेदारों ने, बिछाया जाल माया का-2
बिछाया जाल माया का-2
तेरे भक्तो से हो प्रीती, तेरा परिवार काफी है-2
जगत के रंग क्या देखूँ, तेरा दीदार काफी है।
करूं मैं प्यार किस किससे, तेरा एक प्यार काफी है।

जगत की झूटी रोशनि से, हैं आँखे भर गयी मेरी-2
हैं आंखे भर गयी मेरी-2
तेरी आँखों में हरदम तेरा चंकार काफी है-2
जगत के रंग क्या देखूँ, तेरा दीदार काफी है।
करूं मैं प्यार किस किससे, तेरा एक प्यार काफी है।
तेरा एक प्यार काफी है-2
तेरा दीदार काफी है -2

Jay Jay Girivar Raj Kishori - जय जय गिरिबरराज किसोरी

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति (अयोध्याकाण्ड से)

जय जय गिरिबरराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता।।

नहिं तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव विभव पराभव कारिनि।
बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।

[दोहा]
पतिदेवता सुतीय महुँ,
मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि,
सहस सारदा सेष।।235।।


सेवत तोहि सुलभ फल चारी।
बरदायिनी पुरारि पिआरी।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

मोर मनोरथु जानहु नीकें।
बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं।
अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।

बिनय प्रेम बस भई भवानी।
खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ।
बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।

[छंद]
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु,
सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु,
सनेहु जानत रावरो।।

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय,
सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि,
मुदित मन मंदिर चली।।


[सोरठा]
जानि गौरि अनुकूल सिय,
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल,
बाम अंग फरकन लगे।।236।।

Jay Jay Surnayak - जय जय सुरनायक

ब्रह्मादी देवो द्वारा स्तुति - रामचरितमानस से

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनं योगिभिध्यार्नगम्यम्,
वंदे विष्णुम् भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।।
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोइ।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोइ।।
1)
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुनगन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
2)
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाङि सयानी सरन सकल सूरजूथा।।
3)
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना।
जेहिं दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवहु सो श्रीभगवउाना।।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिध्द सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।

【दोहा】
जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह ।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह ॥