संसार के माली ने, संसार रचाया है।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
(1)
फूलो में बहारों में, पतझड़ में सितारों में,
तेरा रूप झलकता है, संगीत तरानों में।
भवरों की गुंजन में, ऐसा गीत सुनाया है।।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
(2)
कही निर्मल धारा है, कहीं सागर प्यारा है।
महताब में ठंडक है, कहीं दूर किनारा है।
घनस्याम घटावो में, ऐसा जल बरसाया है।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
(3)
कोई चार के कंधो पर, संसार से जाता है,
कोई ढोल बजाकर के, बारात सजाता है,
ये मेल है सृष्टी का, कोई पार न पाया है,
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
संसार के माली ने, संसार रचाया है।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
(1)
फूलो में बहारों में, पतझड़ में सितारों में,
तेरा रूप झलकता है, संगीत तरानों में।
भवरों की गुंजन में, ऐसा गीत सुनाया है।।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
(2)
कही निर्मल धारा है, कहीं सागर प्यारा है।
महताब में ठंडक है, कहीं दूर किनारा है।
घनस्याम घटावो में, ऐसा जल बरसाया है।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
(3)
कोई चार के कंधो पर, संसार से जाता है,
कोई ढोल बजाकर के, बारात सजाता है,
ये मेल है सृष्टी का, कोई पार न पाया है,
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
संसार के माली ने, संसार रचाया है।
संसार रचाकर के, कण कण में समाया है।
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